The Rise and Fall of Blu Smart Case study

ब्लू स्मार्ट एक ऐसा नाम जो कुछ साल पहले तक इलेक्ट्रिक कैब रेवोल्यूशन का पोस्टर चाइल्ड माना जा रहा था। यह कहानी है एक स्टार्टअप के राइज़ और फॉल की जो शुरू होती है 2019 में सपनों के साथ और फिर खत्म होती है 2025 में एक स्कैम की तरह। 

2019 में गुरुग्राम के mini IT  शहर में, तीन Ambitious Founders – अनमोल सिंह जग्गी, उनके भाई पुनीत सिंह जग्गी और साथी पुनीत गोयल थे। इन्होंने पिच किया “एक नया सपना कि भारत का सबसे पहला ऑल इलेक्ट्रिक राइड हीलिंग प्लेटफार्म जो Ola Uber का इको फ्रेंडली अल्टरनेटिव बनेगा” कंपनी का विज़न क्लियर था। Pollution free commute reliable service और ड्राइवर्स और कस्टमर्स के साथ फेयरनेस। कोई ड्राइवर cancellation नहीं होंगी। 100% हमारी कैब्स जो है वो इलेक्ट्रिक होंगी।

अब फाउंडर्स ने कहा कि हम पूरी तरह से कार्बन फ्री राइड शेयरिंग देंगे और देश की ट्रैफिक और Air pollution समस्या को हल कर देंगे । पुनीत गोयल का कहना था कि ब्लू स्मार्ट ने launch के बाद 20,000 से ज्यादा कस्टमर्स को सर्व किया है और हम टारगेट कर रहे हैं कि कुछ ही महीनों में 10 लाख कस्टमर्स तक पहुंच जाएंगे। अब यह बड़े-बड़े दावे इन्वेस्टर्स और पब्लिक को काफी अट्रैक्टिव लगे। लोगों ने सोचा कि भाई ये स्टार्टअप सच में सिटी ट्रांसपोर्टेशन का चेहरा बदल सकता है। 

इसी के साथ-साथ ब्लू स्मार्ट अपने आप को इंडिया की पहली और सबसे बड़ी जीरो एमिशन कैब सर्विस के तौर पर प्रेजेंट करने लगा। एक तरफ जहां Ola और Uber पर सर्च प्राइसिंग कैंसिलेशन और ड्राइवर मिसकंडक्ट के आरोप लगते थे। ब्लू स्मार्ट ने इमेज बनाई एक सुधरे हुए प्लेटफार्म की। उन्होंने promise किया कि हर राइट टाइम पर पिकअप होगी। कोई नखरा नहीं। सारे ड्राइवर्स कंपनी के थे। गाड़ियां इलेक्ट्रिक ईवीज थी। मतलब ना पेट्रोल का झंझट और ना ही पोलशन का। यह सब सुनके काफी कस्टमर्स इंप्रेस हुए। 

जिन्हें बार-बार Ola Uber ड्राइवर्स की कैंसिलेशन से परेशानी होती थी। वो ब्लू स्मार्ट की तरफ अट्रैक्ट हो गए। एनवायरमेंटल एंगल ने भी हाइप क्रिएट किया। दिल्ली एनसीआर की गंदी हवा में अगर ईवी कैब मिले तो कौन नहीं चाहेगा? अब ईवी मोबिलिटी मिशन के इस दावेदार को मीडिया ने भी इको फ्रेंडली सेवियर की तरह हाईलाइट किया। Mahindra एंड Mahindra जैसे ओईएम के साथ टाई अप करके ब्लू स्मार्ट ने अपनी पहली फ्लट ल्च करी। गाड़ियां शुरू में Mahindra ever और Tata की ईटोर जैसी इलेक्ट्रिक थी। हर गाड़ी में जीपीएस डैशबोर्ड पर लाइव फीडबैक और ड्राइवर रेटिंग सिस्टम हुआ करता था। 

पहली नजर में ब्लू स्मार्ट एक सीरियस टेक ड्रिवन ग्रीन स्टार्टअप दिखा जिसे गवर्नमेंट पॉलिसीज जैसे कि फेम का भी फायदा मिल सकता था। अब इन्वेस्टर्स के लिए यह कॉम्बिनेशन लाजवाब था। क्लीन टेक्नोलॉजी राइड हीलिंग दोनों के दोनों हॉट सेक्टर्स। अब दीपिका पादुकोण की फैमिली ऑफिस ने भी इन्वेस्ट किया। 2019 के एंजल राउंड में उन्होंने और जीतो एंजेल नेटवर्क जैसों ने मिलकर $3 मिलियन यानी कि लगभग ₹21 करोड़ लगाए। यह खबर मीडिया में जैसे ही छपती है ब्लू स्मार्ट को एक और लाइमलाइट मिल जाती है।

स्टार्टअप इकोसिस्टम में लोग कहने लगते हैं कि यह अगला यूनिकॉर्न बन सकता है। अर्ली स्टेज फंडिंग से ब्लू स्मार्ट ने दिल्ली एनसीआर में ऑपरेशंस बढ़ाए और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी ध्यान दिया। उनका ऐ सिर्फ कैब सर्विस ही नहीं बल्कि कंप्लीट अर्बन मोबिलिटी सॉल्यूशन बनाना था। जिसमें शायद आगे चलके सब्सक्रिप्शन बेस रेंटल्स और पब्लिक चार्जिंग स्टेशंस भी होते। अब कंपनी की ग्रोथ स्टोरी सुनकर नए इन्वेस्टर्स भी जुड़ने लगे। 2019 के एंड तक और फंड रेज हुआ। ब्लू स्मार्ट ने एक्सपेंशन का प्लान बनाया। 

2021 आते-आते ग्लोबल एनर्जी जॉइंट बीपी के वेंचर आर्म यानी कि बीपी वेंचर्स ने भी इसमें इन्वेस्ट कर दिया। अब बीपी वेंचर्स ने ब्लू स्मार्ट के सीरीज ए राउंड को लीड किया और लगभग 13 मिलियन खुद लगाए। टोटल सीरीज ए फंडिंग 25 मिलियन के आसपास हुई। सितंबर 2021 में हुई सीरीज ए फंडिंग में मेफील्ड इंडिया फंड नाइन यूनिकॉर्न सुरवाम पार्टनर जैसे नाम भी शामिल थे। फिर 2022 में इसी सीरीज ए को एक्सटेंड करके और 25 मिलियन Raise किए गए। वेंचर कैटलिस्ट ग्रीन फ्रंटियर कैपिटल दीपिका बीपी वेंचर सब मिलकर ब्लू स्मार्ट के लिए 50 मिलियन तक ले आए। 

कहने लगे कि अब ब्लू स्मार्ट मुंबई, पुणे, बेंगलुरु सब जगह पहुंचेगा। कंपनी इंटरनल पिचक्स में भी बड़ा ऑप्टिमिस्टिक पिक्चर दिखाया गया। एक रिपोर्ट के मुताबिक मई 2023 तक ब्लू स्मार्ट ने 42 मिलियन की फंडिंग सिक्योर कर ली थी और कंपनी वैल्यू्यूएशन भी 250 मिलियन तक पहुंच गई। अनमोल सिंह जग्गी ने ब्लूमबर्ग को बताया कि ब्लू स्मार्ट की वैल्यू क्वार्टर बिलियन है और अगले एक साल में हम फ्लट $00 गाड़ियों तक डबल कर देंगे। इतना ही नहीं जग्गी ने Uber और Ola को टारगेट करते हुए बोला कि Ola और Uber अपने कस्टमर्स और ड्राइवर्स के साथ न्याय नहीं कर रहे। 

वह प्लेटफार्म से सिर्फ पैसा गवा रहे हैं। उनका बिजनेस मॉडल टिकाऊ नहीं है। उनकी यूनिट इकोनॉमिक्स फेल हो जा रही है। यानी अपने इन्वेस्टर्स को यह सिग्नल दिया कि ब्लू स्मार्ट इन इनकंबेंट से बेहतर कर रहा है। लॉस नहीं बल्कि एक सस्टेनेबल मॉडल पर भी चलेगा। अब ब्लू स्मार्ट की पिच डेस्क में फ्लैशी नंबर्स और ग्राफ्स थे। उन्होंने दिखाया कि 2021-22 के दौरान कंपनी ने लाखों राइड्स कंप्लीट किए हैं। कंपनी वेबसाइट्स पर दावे आए कि उन्होंने 1.45 करोड़ राइड्स कंप्लीट कर ली है और 8500 ईवीस का फ्लट है। 5800 चार्जिंग स्टेशंस का बड़ा नेटवर्क है। 

हालांकि बाद में पता चला कि इनमें से काफी क्लेम्स अधूरे या इनफ्लेटेड थे। फिर भी 2024 तक ब्लूस्म ने कुछ और फंडिंग ली। जुलाई 2024 में 200 करोड़ यानी कि 24 मिलियन डॉल का राउंड क्लोज हुआ। जिसमें एमएस धोनी के फैमिली ऑफिस और रिन्यू के फाउंडर सुमंत सिन्हा जैसे नाम शामिल थे। अब टोटल गिन के देखें तो इनसेप्शन से ब्लू स्मार्ट ने 180 मिलियन डॉल डेप्ट और इक्विटी से रेज करें। यह नंबर बहुत बड़ा था। एक 5 साल पुरानी कंपनी के लिए लेकिन फिर जो हुआ उसने पूरी कहानी को पलट दिया। बाहर से सब कुछ इंप्रेसिव लग रहा था। 

बड़ी फंडिंग, बड़ी बातें, इलेक्ट्रिक गाड़ियां पर अंदर ही अंदर कुछ दरारें शुरू हो चुकी थी। जब icईc जैसी एक अर्ली स्टेज वेंचर कैपिटलिस्ट फर्म ने अपना स्टेक जल्दी एग्जिट कर लिया क्योंकि उन्हें कंपनी में केओस और गड़बड़ का अंदाजा हो गया था। उस वक्त कुछ लोगों को पहली बार संकेत मिला कि ब्लू स्मार्ट की टीम अंदर से इतनी सॉलिड नहीं। फिर 2022-23 के दौरान कंपनी के ऑपरेशंस में हिचकिचाहट दिखने लगी। एक तरफ ब्लू स्मार्ट अग्रेसिवली स्केल अप कर रहा था और दूसरी तरफ ग्राउंड रियलिटी पर ड्राइवर्स की हार्डशिप्स बढ़ने लगी। 

ब्लू स्मार्ट ड्राइवर्स ने बताया कि उन पर बहुत स्ट्रिक्ट पॉलिसीज थोपी गई। एग्जांपल के लिए अगर एक कस्टमर ने कंप्लेंट कर दी फिर चाहे गलती ड्राइवर की हो या ना हो सीधा ₹1000 फाइन ड्राइवर की सैलरी से कट जाएगा। सोचिए जिन ड्राइवर्स की डेली कमाई 1800 से 2000 है उनके लिए 1000 की पेनल्टी कितनी भारी होगी? ड्राइवर अगर बीमारी या ट्रैफिक की वजह से रिपोर्ट करने में 30 मिनट्स भी लेट हो जाए तो ₹118 का जुर्माना अलग से लगता था। 

यह सब सुनकर ड्राइवर्स का काफी मोटिवेशन टूटने लगा। काफी लोगों ने बताया कि कभी-कभी उन्हें दिन भर में सिर्फ ₹400 की कमाई हुई क्योंकि बाकी पेनल्टीज और डिडक्शन में चला जाता था। इनमें से एक ड्राइवर का किस्सा बहुत मशहूर हुआ। उसने एक बार कस्टमर को सोसाइटी गेट पर पिकअप किया क्योंकि अंदर जाना अलाउड नहीं था। लेकिन फिर भी कस्टमर ने कंप्लेंट कर दी और इस व्यक्ति का ₹1000 कट गया बिना उसकी बात को सुने हुए। एक दूसरे ड्राइवर की एग्जांपल उसको एक राइडर ने ₹700 का फेयर बाद में देने को बोला और कांटेक्ट डिटेल्स देकर उतर गया। जब राइडर ने बाद में पैसा नहीं दिया तो मजबूरन ड्राइवर उसके घर तक पहुंचा। जहां उल्टा राइडर ने धमका दिया। 

अब एंड रिजल्ट ड्राइवर के ₹700 भी गए और कंपनी ने ऊपर से ₹1000 का फाइन भी काट लिया। ड्राइवर की सुनवाई नहीं हुई और कंप्लेंट आते ही मैनेजमेंट ने उन्हें ही दोषी मान लिया। अब ड्राइवर्स ने बताया कि अगर वह कंपनी कैनफेयर फाइन के खिलाफ आवाज उठाते तो उनका अकाउंट सस्पेंड कर दिया जाता था। यह सब चीजें अंदर ही अंदर चल रही थी जिससे ड्राइवर कम्युनिटी में गुस्सा और डर का माहौल पैदा हो गया। अब इसी दौरान हमें कुछ और रेड फ्लैग्स भी देखने को मिले। ब्लू स्मार्ट का फाइनेंस ऑलरेडी हैवी बर्न रेट पे चल रहा था। 

कंपनी लगभग हर महीने 20 करोड़ का कैश बर्न कर रही थी। सिर्फ अपने ऑपरेशंस को मेंटेन करने के लिए। अब इतने पैसे तो राइट से भी नहीं बन रहे थे लेकिन फिर भी नई गाड़ियां लेने नए शहर जाने की बातें हो रही थी। 2023 के आखिरी में खबर आई कि Uber ब्लू स्मार्ट को एक्वायर करने में इंटरेस्टेड है लेकिन ब्लू स्मार्ट ने इसे झुठला दिया। शायद सच यह था कि ब्लू स्मार्ट खुद ही Uber के पास गए फंडिंग के लिए क्योंकि दूसरा राउंड क्लोज करना मुश्किल हो रहा था। अब 2024 की शुरुआत में हालात यह था कि कंपनी ने दुबई में जो ऑपरेशन शुरू किए थे | 

उन्हें मार्च 2024 में बंद करना पड़ा और सऊदी अरेबिया एक्सपेंशन प्लान कैंसिल हो गया। टॉप मैनेजमेंट भी हिलने लगा। सीईओ अनिरुद्ध अरुण, सीबीओ तुषार गर्ग, सीटीओ ऋषभ सूद, वीपी प्रिया चक्रवर्ती ये सब 2023 के एंड तक कंपनी से निकल गए या निकाल दिए गए थे। अब ऐसे एग्जोडिस ने एकदम से अंदेशा बढ़ा दिया कि भाई कुछ तो गड़बड़ है। और यही थी वह पहली दरार। ब्लू स्मार्ट की ग्लॉसी पिच के पीछे एक अनइजी रियलिटी जन्म ले रही थी। फाउंडर्स ने बाहर से तो सब ठीक कर दिखाया पर अंदर फाइनेंसियल डिसिप्लिन और गवर्नेंस बहुत ज्यादा बुरा था। 

कुछ इंडस्ट्री इनाइडर्स ने कहना शुरू किया कि ब्लू स्मार्ट अपनी वैल्यू्यूएशन को जस्टिफाई करने के लिए नंबर्स को मैनपुलेट कर रहा है। शायद राइट्स कंप्लीट होने का डाटा या रेवेन्यू फिगर्स को बढ़ा चढ़ा के बता रहा है। 204 मिड में सेबी को भी एक कंप्लेंट मिली जिसमें जेसोल यानी कि ब्लू स्मार्ट की एफिलिएटेड ईवी सप्लायर है जो उसके शेयर प्राइस और फंड डायवर्जन का जिक्र था। पर तब तक यह बात खुलेआम नहीं आई। सब कुछ एक अनदेखे क्राइसिस की तरफ बढ़ रहा था। इसी के बाद अप्रैल 2025 आते-आते ब्लू स्मार्ट की कहानी में सबसे बड़ा ट्विस्ट आ गया। 

सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) उसने एक एक्सप्लोसिव इंटेरिम ऑर्डर पास किया। 15 अप्रैल 2025 पता चला कि ब्लू स्मार्ट के प्रमोटर्स अनमोल और पुनीत जग्गी एक भारी स्कैम में इन्वॉल्व है। जिसे सेबी ने अनकवर करा। यह स्कैम सीधा ब्लूs की फंडिंग से जुड़ा था। बल्कि उस बैकबोन से भी जो आज तक ज्यादा हाईलाइट नहीं हुआ था। 

JSOL इंजीनियरिंग लिमिटेड वो लिस्टेड कंपनी जो ब्लू स्मार्ट की गाड़ियों को फाइनेंस कर रही थी। सेबी के ऑर्डर ने बताया कि जसोल ने 2021 से 2024 के बीच 977.75 करोड़ का लोन लिया जिसमें पब्लिक लेंडर्स जैसे कि आईआरईडीए और पीएफसी भी शामिल थे और यह लोन ईवी खरीदने के लिए लिया गया था। अब इन पैसों का मकसद यह था कि jsोल 6400 इलेक्ट्रिक व्हीकल्स खरीदेगा और ब्लू स्मार्ट को लीज़ पर देगा। इस तरह ब्लू स्मार्ट को गाड़ियों का अपफ्रंट खर्चा नहीं उठाना था और सब उनके लिए जसोल अरेंज कर रहा था। लेकिन जसोल ने सिर्फ 474 ईवीजी एक्चुअली परचेस करे जिसका खर्चा सिर्फ ₹68 करोड़ था। यानी 262 करोड़ का लोन अभी भी कहीं गायब था। एक साल से ज्यादा गुजर गया और यह पैसा कहां गया इसका हिसाब ही नहीं था। 

बस यहीं से सेबी ने सुराग पकड़ने शुरू करे। जांच में पता चला कि यह पैसा बहुत ही चालाकी से इधर-उधर घुमाया गया। सेबी ने बैंक स्टेटमेंट्स निकाले तो देखने को मिला कि जसोल ने जो पैसा ईवी सप्लायर जो कि गो ऑटो प्राइवेट लिमिटेड था उसको दिए उनमें से बहुत से फंड वापस जसोल को या जसोल के प्रमोटर्स के कंट्रोल वाले एंटिटीज को लौट आए। यानी एक सर्कुलर ट्रेडिंग और सफनिंग का जाल बिछाया गया था। इसमें कुछ नाम निकले कैब्रिज वेंचर्स एलएलपी और वेलफरे या वेलरे सोलर इंडस्ट्रीज जैसी एंटटीज जहां जग्गी भाइयों का डायरेक्ट या इनडायरेक्ट कंट्रोल था। अब पैसा पहले गो ऑटो को दे दिया गया।

फिर वहां से वह कैब्रिज को ट्रांसफर हुआ। फिर कैब्रिज ने उस पैसे को आगे भेज दिया। अब ऐसे ही वेलफेयर को भी जसोल ने 424 करोड़ ट्रांसफर किए जिसमें ₹382 करोड़ फिर आगे कहीं और जगह ट्रांसफर कर दिए गए। यह सब सुन के फाइनेंसियल एक्सपर्ट्स ने भी माथा पकड़ लिया क्योंकि यह टेक्स्ट बुक फ्रॉड की तरह था। सबसे हिला देने वाली बात इन घुमाए गए पैसों से प्रमोटर्स ने अपना पर्सनल शौक पूरा किया। सेबी कहता है कि प्रमोटर्स ने कंपनी को अपनी पिगी बैंक की तरह यूज़ किया। 

जैसे ही पैसा अपनी जेब में आया जग्गी भाइयों ने उन्हें पर्सनल एक्सपेंसेस में उड़ाना शुरू कर दिया। 42.94 करोड़ का एक लग्जरी अपार्टमेंट गुड़गांव के डीएलएफ कैमिलियाज़ में। ये इतना महंगा फ्लैट खरीदने के लिए भी पैसा सीधा नहीं डाले। पहले कैब्रिज के थ्रू डीएलएफ को पेमेंट हुआ बुकिंग के लिए और फिर 42.94 करोड़ ट्रांसफर करके फाइनल परचेस हुआ। अपार्टमेंट जिस फर्म के नाम पे लिया गया उसके पार्टनर्स कौन थे? जसोल के एमडी अनमोल जग्गी और उनके भाई पुनीत उस फर्म के पार्टनर्स निकले। आप इनकी बेशर्मी की हद तो देखिए। जो लोन इलेक्ट्रिक गाड़ियां लाने के लिए था उससे गुड़गांव में करोड़पतियों के लिए महल में एक फ्लैट खरीद लिया गया। यही नहीं और सुनिए खर्चों की लिस्ट यहीं खत्म नहीं होती। सेबी की रिपोर्ट में एक-एक पर्सनल चीज के ऊपर इनका एक्सपेंडिचर गिनाया गया है। 26 लाख इन्होंने एक महंगी गोल्फ सेट खरीदने में उड़ा दिए। 6.2 करोड़ अनमोल जग्गी ने अपनी मां जसविंदर कौर के अकाउंट में ट्रांसफर करे। 3 करोड़ अपनी पत्नी मुग्धा कौर जग्गी को दिए। 1.86 करोड़ फॉरेन करेंसी खरीदने में इन्वेस्ट किया। 17.28 लाख टाइटन कंपनी को पेमेंट हुआ जो शायद लग्जरी वॉचेस या ज्वेलरी के लिए था। 17.5 लाख डीएलएफ होम्स को और दिए। 

शायद मेंटेनेंस या इंटीरियर के लिए। ₹ लाख मेक माय ट्रिप को वेकेशन या ट्रेवल बुकिंग के लिए थे। और तो और एक एस्टोनिशिंग डिटेल यह निकली कि अनमोल ने इस डाइवर्टेड फंड में ₹50 लाख निकाल के अशनीर ग्रोवर के नए स्टार्टअप थर्ड यूनिकॉर्न में भी इन्वेस्ट कर दिया। मतलब दूसरे स्टार्टअप में भी पैसा लगाने लगे अपने पर्सनल फायदे के लिए और वो भी लोन में मिले हुए घपले वाले पैसों से। अब ये सारे खुलासे जब सामने आए तो इन्वेस्टर्स सर पकड़ के रह गए। कंपनी के फंड्स को प्रमोटर्स ने अपनी जगीर समझ लिया था। जैसे कोई प्रोपरेटरी फर्म हो। सेबी ने अपने ऑर्डर में ये साफ लिख दिया। 

यह कॉर्पोरेट गवर्नेंस की इतनी बड़ी फेलियर थी कि सोचा नहीं जा सकता। सेबी ने इसके ऊपर तुरंत एक्शन लेते हुए अनमोल और पुनीत जग्गी को हर तरह की डायरेक्टरशिप से रिमूव कर दिया और सिक्योरिटीज मार्केट में ट्रेडिंग से भी उन्हें इनडेफिनेटली डिबार कर दिया गया। जेसल को बोला गया कि जो स्टॉक स्प्लिट अनाउंस कर दिया था उसको अभी रोक दे। यह इंटेरिम ऑर्डर काफी था। ब्लू स्मार्ट की कमर तोड़ने के लिए। jsol का स्टॉक जो है वह 5% नीचे लोअर सर्किट हिट करके अटक गया। इन्वेस्टर्स पैनिकिक मोड में आ गए। 

सोचिए जो स्टार्टअप अपने आप को सस्टेनेबल फ्यूचर बता के क्रो्स रेज कर रहा था उसके फाउंडर्स ऐसे पैसे निकालकर गोलफ खेलने और लग्जरी फ्लैट में इन्वेस्ट करने लगे। अब सोचिए जब एक स्टार्टअप का दिखावा भरोसा बन जाए तो उसका नतीजा क्या होता है? देखिए ब्लू स्मार्ट के केस में नतीजा यह हुआ कि कंपनी की सारी क्रेडिबिलिटी धूल में मिल गई। जिस वक्त सेबी का यह ऑर्डर पब्लिक हुआ जो कि 16 अप्रैल 2025 के आसपास था। ब्लू स्मार्ट की सर्विस भी बिना किसी वार्निंग के बंद पड़ गई। 

सेबी के क्रैकडाउन के तुरंत बाद 16 अप्रैल 2025 की शाम को ब्लू स्मार्ट ऐप ने बुकिंग्स लेना बंद कर दिया। दिल्ली एनसीआर, बेंगलुरु, मुंबई तीनों जगह अचानक इनकी राइड्स अनवेलेबल हो गई। कोई ऑफिशियल एक्सप्लेनेशन ऐप पर नहीं था। बस एक ईमेल कस्टमर्स को आया जिसमें लिखा था वी हैव डिसाइडेड टू टेंपरेरीली क्लोज द बुकिंग्स ऑन द ब्लू स्मार्ट एप। बिना कोई रीज़न दिए। थाउजेंड्स ऑफ ड्राइवर्स एक झटके में बेरोजगार हो गए। एयरपोर्ट जैसी लोकेशनेशंस पर अनाउंसमेंट्स होनी पड़ी कि ब्लू स्मार्ट कैब्स अब अवेलेबल नहीं है। अपने आप के लिए कोई अल्टरनेट अरेंज कीजिए। ड्राइवर्स को खुद समझ नहीं आया कि उनके साथ क्या हुआ।

उनकी गाड़ियां जो कंपनी की थी वो चार्जिंग हब्स पर उन्हें ऐसी ही छोड़नी पड़ी। अब जब इन गाड़ियों को देखा गया तो इनमें से कई गाड़ियों के टायर्स ऑलरेडी घिसे हुए थे। स्पेयर व्हील्स तक नहीं थे। पहले भी मतलब मेंटेनेंस हालत खराब ही थी। जिन्हें देख के पता चलता है कि कंपनी की हालत कितनी ज्यादा बुरी होगी। ऊपर से कई ड्राइवर्स के फरवरी मार्च की सैलरी और ड्यूस भी डिले हो रहे थे। कुछ ड्राइवर्स ने कंप्लेन किया कि जनवरी से उन्हें इंसेंटिव्स भी नहीं मिले थे। जब कंपनी बंद हुई तो ड्राइवर्स ने गुहार लगाई कि कम से कम उनको कंपनसेशन तो दिया जाए।

अब ब्लू स्मार्ट के ड्राइवर्स का एक ग्रुप प्रोटेस्ट पे उतर आया है। अरियर्स की डिमांड की और सडन सस्पेंशन पे कंपनसेशन भी मांग रहा है। क्योंकि बिना नोटिस उनकी नौकरी एकदम से चली गई। बहुतों का कहना था कि हमने पेट्रोल और डीजल गाड़ियां छोड़ी। ब्लूट स्मार्ट जॉइ किया बेटर फ्यूचर के लिए। पर भाई अब हमें बीच रास्ते छोड़ दिया जा रहा है। अब ये हरासमेंट और मिसट्रीटमेंट का सबसे बड़ा केस निकला जिसमें ना तो कोई सोशल सिक्योरिटी मिली ना ही कोई इनाम। अब ड्राइवर्स जो हैं वो प्लेटफार्म के एम्प्लई नहीं माने जाते थे तो लीगल रिकॉर्ड्स भी मुश्किल था।

काफी ड्राइवर्स को समझ नहीं आ रहा था कि अगला पेचेक कहां से आएगा। दूसरी तरफ कस्टमर्स का भी वही हाल है। कस्टमर्स भी अपने आप को चीटेड फील कर रहे हैं। ब्लू स्मार्ट के काफी लॉयल यूज़र्स थे जो कन्वीनियंस के लिए इन ऐप वॉलेट में पैसे डाल के रखते थे क्योंकि कैशबैक मिलते थे। अब ऐप बंद तो वॉलेट का पैसा अटक गया। सोशल मीडिया पर लोग चिल्लाने लगे कि ब्लू स्मार्ट बंद हो गया है पर वॉलेट का पैसा कैसे मिलेगा? रिफंड कैसे मिलेगा? एक एक्स यूजर ने अपने एक्स अकाउंट पे लिखा कि मैंने ब्लू स्मार्ट रोज यूज़ किया इसलिए कार तक नहीं खरीदी। 

जनवरी में 30,000 वॉलेट में डाले 10% कैशबैक के चक्कर में। अब ₹18,5000 बचे हैं और मेरे डैड के अकाउंट में 6,000। क्या यह पैसे हमें वापस मिलेंगे? दूसरे ने लिखा कि 5 के वॉलेट में और 2K लीट सब्सक्रिप्शन के पैसे में अटक गए हैं बिना अपडेट के। अब ब्लू स्मार्ट की टीम शायद इस बैकलश के लिए तैयार नहीं थी। पहले तो कुछ कस्टमर्स को जेरिक रिप्लाई मिला कि आपके फंड सेफ है। लाइफ टाइम वैलिडिटी है। किसी और के लिए राइट बुक कर सकते हैं। मतलब रिफंड का कोई इरादा नहीं था। 

लेकिन जब लोगों ने ज्यादा प्रेशर डाला तो बोला कि भाई ठीक है फाइव टू से वर्किंग डेज में रिफंड आ जाएगा। फिर इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट आई कि कंपनी ने कहा है कि 90 डेज में सारे वॉलेट का पैसा वापस करेंगे। पर जनता को इस प्रॉमिस पर विश्वास नहीं था क्योंकि जिस तरह सर्विज सस्पेंड हुई उसमें ट्रांसपेरेंसी की कमी थी। कुछ यूज़र्स का 700 से 800 तो कुछ का 20,000 से प्लस अटका पड़ा था। मीडिया रिपोर्ट से एक और प्लान पता चला। इकोनमिक टाइम्स ने 14th अप्रैल को रिपोर्ट किया कि ब्लू स्मार्ट अपनी राइड हीलिंग सर्विज को धीरे-धीरे बंद करके Uber का फ्लट पार्टनर बनने की सोच रहा है।

यानी BST के पास जो गाड़ियां हैं उन्हें Uber प्लेटफार्म पर चला दिया जाएगा और ब्लू स्मार्ट अपना ऐप खत्म करेगा। 700 से 800 गाड़ियां से शुरुआत करके पूरा फ्लट उबर को शिफ्ट करने का प्लान था। सोचिए कैसी आयरनी है जो स्टार्टअप Uber को टक्कर देने आया था वही आखिर में Uber का सहारा ढूंढ रहा था अपने फ्लट को बचाने के लिए। इसको क्लियरली एकनॉलेज भी किया गया कि जब नया फंडिंग राउंड नहीं मिला ये वाला जो 50 मिलियन के डॉलर्स के आसपास लाना था उसकी बात कर रहे थे। तो लास्ट रिसोर्ट यही था कि Uber के अंडर कुछ रेवेन्यू आने लगे।

पर सैबी के ऑर्डर ने इन सब कैलकुलेशंस पर पानी फेर दिया। फाउंडर्स जो जग्गी ब्रदर्स हैं कुछ सिक्योरिटी मार्केट से बैन हो गए। नए इन्वेस्टर्स भाग गए। क्योंकि अब कौन पैसा डालेगा जहां पर मोटर पर ही फ्रॉड का इल्जाम हो। अब ब्लू स्मार्ट का जो 50 मिलियन का फ्रेश राउंड था वो फेल हो गया। अब कंपनी एकदम से कैश क्रंच में आ गई। ऑपरेशन सस्टेन करना नामुमकिन हो गया। अनमोल जग्गी ने मार्च एंड तक एम्प्लाइजस को ईमेल करके माना कि कोई कैश क्रंच नहीं है। सब ठीक है। पर अंदर खबर थी कि डिफॉल्ट हो रहा है। एक्चुअल में ब्लू स्मार्ट फरवरी 2025 में 30 करोड़ के बॉन्ड्स का डिफॉल्ट कर चुका था। पर तब भी मैनेजमेंट ने बाहर बोलने से मना किया। अब जब सब पब्लिक डोमेन में आ गया तो मैनेजमेंट के पास और कोई चारा नहीं था। अप्रैल 17 और 18, 2025 तक ब्लू स्मार्ट का सफर वर्चुअली खत्म हो गया था। यूज़र्स वर स्टैंडर्ड डवर्स वर फ्यूरियस इन्वेस्टर्स वर रज। पहले तो कंपनी ने बोला कि पैसा सेफ है। 

फिर बोला 7 दिन में मिलेगा और अब कह रहे हैं 90 दिन वेट करो। एक कस्टमर आखिर कार कब तक वेट करेगा? इतना ट्रस्ट तो टूट ही चुका है कि लोगों को लगने लगा है कि उनका पैसा डूब गया है। ब्लू स्मार्ट का नाम अब एक स्टार्टअप स्कैम के रूप में सामने आया है। जहां एक तरफ भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम byjuj, Paytm जैसों के स्ट्रगल्स देख रहा था। वहीं ब्लू स्मार्ट जैसे घोटाले ने साफ दिखा दिया है कि बैड प्लेयर्स की वजह से पूरा इकोसिस्टम बदनाम हो जाता है। 

दोस्तों इसमें हमें कुछ सोच और सुधार की जरूरत है। एस्पेशली अगर आप भारत के स्टार्टअप कल्चर को बचाने की बात कर रहे हो तो ब्लू स्मार्ट की ट्रेजडी हमें मजबूर करती है यह पूछने पे कि ऐसा क्या है जो कुछ लोग इंडिया के स्टार्टअप कल्चर को बिगाड़ रहे हैं या कुछ फाउंडर्स सपने बेचते हैं। लोगों का भरोसा जीतते हैं, फंडिंग रेज करते हैं और फिर अपने ही इन्वेस्टर्स कस्टमर्स और एम्प्लाइजस को धोखा दे देते हैं। अनमोल और पुनीत जग्गी जैसे लोग जिन्होंने अपने मिशन को साइड वॉक करके पर्सनल एनरचमेंट को प्राइमली गोल बना लिया वो पूरे इकोसिस्टम के लिए कैंसर की तरह है। जिस तरह उन्होंने पब्लिक मनी और इन्वेस्टर मनी का गलत इस्तेमाल किया उससे जेन्युइन एंटरप्रेन्योर का भी नाम खराब होता है। ऐसे लोग startup culture को और The people of Trust को ख़त्म कर रहे हैं|

अब कल को अगर कोई नई स्टार्टअप फंडिंग मांगती है तो इन्वेस्टर्स को ब्लू स्मार्ट जैसा स्कैम याद आएगा और वह हेजिटेट करेंगे। अब ऐसे में सवाल उठता है कि भाई इन फाउंडर्स के साथ क्या होना चाहिए? देखिए सबसे पहले तो इन्हें कानूनी सजा मिलनी चाहिए ताकि एक एग्जांपल सेट हो। इंडिया में ऑलरेडी लॉज़ हैं। देखिए इंडिया में जो पहले लॉज़ थे जैसे कि आईपीसी उसके सेक्शन नंबर 420 जो अभी बीएएस में बदल गया है वो कहता है कि चीटिंग एंड डिसऑनेस्टली इंड्यूसिंग डिलीवरी ऑफ़ प्रॉपर्टी। जिसके तहत इन पर केस बन सकता है क्योंकि इन्होंने झूठे वादे करके पैसे लिए और गलत खर्च किए।

इसके बाद सेक्शन 406 एंड 409 ऑफ आईपीसी क्रिमिनल ब्रीच ऑफ ट्रस्ट भी लागू हो सकता है। जब एक एजेंट या प्रमोटर ट्रस्ट तोड़कर एसेट डाइवर्ट करता है। यह दोनों सीरियस क्रिमिनल ऑफेंसेस हैं जिनके लिए जेल हो सकती है। इसके बाद कंपनीज़ एक्ट 2013 में सेक्शन 447 है जो कॉर्पोरेट फ्रॉड डिफाइन करता है। अगर कोई कंपनी के अफेयर्स में डिसेप्शन हुआ है तो उस पर हैवी फाइन और जेल अप टू 10 इयर्स हो सकती है। सेबी एक्ट 1992 के अंदर भी सेबी इंसाइडर ट्रेडिंग और फ्रॉड पर पेनल्टीज देती है। फिलहाल सेबी ने इन्हें मार्केट से बैन किया है। लेकिन आगे चलके यह लोग अगर गिल्टी प्रूव होते हैं तो उन्हें डायरेक्टर बनने से रोका जाना चाहिए और वो भी परमानेंटली और जितना पैसा सफन किया है वो वसूला जाना चाहिए। जो 266 करोड़ डाइवर्ट हुआ है उसका हिसाब लेना चाहिए। फ्लैट बेच के और इनकी पर्सनल प्रॉपर्टीज को अटैच करके रिकवरी होनी चाहिए। इन्वेस्टर्स को भी अपनी पूरी अकाउंटेबिलिटी देखनी होगी।

ब्लू स्मार्ट जैसी कंपनीज़ में पैसा डालते हुए ड्यू इंटेलिजेंस और सख्त होना पड़ेगा। बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स को सच्चे मतलब में इंडिपेंडेंट रहना होगा। जसोल में भी इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स थे पर वो टाइमली आवाज नहीं उठा पाए या आवाज उठाई नहीं। अगर किसी कंपनी का प्रमोटर बाहर अपने नाम से अलग कंपनी बना के ट्रांजैक्शंस कर रहा है। जैसे जग्गी ने कैब्रिज वेलफेयर बनाकर करा था तो इन्वेस्टर्स और ऑडिटर्स को तुरंत रेड फ्लैग आइडेंटिफाई करना चाहिए। इसके बाद दोस्तों हमें पॉलिसी लेवल पर भी कुछ कदम उठाने होंगे। सबसे पहले स्टार्टअप गवर्नेंस का फ्रेमवर्क। देखिए अभी स्टार्टअप्स को कंप्लायंस से काफी छूट मिलती है एस्पेशली इनिशियल इयर्स में ताकि वो इनोवेट कर सकें। पर जैसे ही कोई स्टार्टअप 100 करोड़ से ज्यादा के फंड्स रेज कर लेता है या पब्लिक से पैसे इनवॉल्व हो जाते हैं। वहां स्ट्रांग फाइनेंसियल गवर्नेंस नॉर्म्स एनफोर्स करनी होगी। एमसीए यानी कि मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉर्पोरेट अफेयर्स को शायद एक थ्रेशहोल्ड डिफाइन करके उन स्टार्टअप्स पर पीरियडिक फाइनेंसियल ऑडिट्स मैंडेट करने चाहिए जो बहुत फंड्स रेज कर चुके हैं। चाहे फिर वो प्राइवेटली हेल्ड ही क्यों ना हो। इसके बाद अगर हम सेबी की बात करें तो फिलहाल सेबी लिस्टेड कंपनीज पर नजर रखता है। जस लिस्टेड था इसलिए यह स्कैम पकड़ा गया। मगर ब्लू स्मार्ट खुद लिस्टेड नहीं था। तो वहां तक पहुंचने में टाइम लगा। शायद सेबी को प्राइवेट यूनिकॉर्न्स या लार्ज स्टार्टअप्स के रिलेटेड पार्टी डील्स पर भी नजर रखने का अधिकार या फ्रेमवर्क बनाना चाहिए। वेंचर फंड्स और एआईएफ्स को भी एक सेल्फ रेगुलेटरी बॉडी के अंदर इस चीज का ध्यान रखना चाहिए। उसके बाद अगर वर्कर्स की बात करें तो गिग इकॉनमी में ड्राइवर्स और कॉन्ट्रैक्ट स्टाफ का एक्सप्लइटेशन रोकने के लिए गवर्नमेंट ने सोशल सिक्योरिटी कोड 2020 में गिग वर्कर्स को डिफाइन किया है। पर अब तक उसका इंप्लीमेंटेशन नहीं हुआ है। 

पॉलिसी मेकर्स को इंश्योर करना चाहिए कि जो ब्लू स्मार्ट के ड्राइवर्स जैसी सिचुएशन में हो उनके लिए एंप्लई लाइक प्रोटेक्शन हो। जैसे अगर कोई प्लेटफार्म बंद होता है तो उनके ड्यू वेजेस का पेआउट एक प्रायोरिटी हो। इनसॉल्वेंसी लॉज़ में भी वर्कमैन ड्यूस प्रेफरेंस में आते हैं। और अगर प्लेटफॉर्म्स अपने वर्कर्स से अनफेयर ट्रीटमेंट करें जैसे कि अनजस्ट पेनल्टीज तो उन पे भी नियंत्रण लाना होगा। यहां ड्राइवर्स काम से भी गए और उनकी अनपेड सैलरी भी शायद उन्हें नाम है। लास्टली आता है दोस्तों कस्टमर प्रोटेक्शन का एंगल। देखिए स्टार्टअप्स जो कस्टमर्स के पैसे वॉलेट में रखते हैं उनप आरबीआई या कंज्यूमर प्रोटेक्शन गाइडलाइंस एनफोर्स होनी चाहिए। 

जैसे प्रीपेड वॉलेट लाइसेंसेस के नॉर्म्स होते हैं वैसे ही यूजर का बैलेंस भी सेफ होना चाहिए। ब्लू स्मार्ट जैसे केस में शुक्र है कुछ लोग अपना पैसा निकाल पाए पहले से पर जिन्हें टाइम नहीं मिला उनका पैसा अटक गया। ऐसे केसेस के लिए एक एस्क्रो मैकेनिज्म या इंश्योरेंस फंड होना चाहिए जो कंपनी बंद होने पर कस्टमर्स को रिफंड इंश्योर कर सके। 90 दिन का वेट अनएक्सेप्टेबल है। इसमें सरकारी मॉनिटरिंग होनी चाहिए। 

अंत में ब्लू स्मार्ट का केस एक वेक अप कॉल है। एक तरफ जहां इंडिया की स्टार्टअप्स दुनिया भर में नाम कमा रही हैं। कुछ लोग अपने पर्सनल लालच के कारण सबका भरोसा खराब कर देते हैं। एक सिनेैटिक शुरुआत जिस देश की पहली ईवी टैक्सी रेवोल्यूशन कहा गया था उसका अंत एक स्कैम के रूप में हुआ। इस कहानी में हीरो कोई नहीं बस सबक है। फाउंडर्स के लिए ऑनेस्टी का, इन्वेस्टर्स के लिए विजिलेंस का, रेगुलेटर्स के लिए प्रोएक्टिव होने का और हम सबके लिए हर चमत्कारी चीज सोना नहीं होती। ब्लू स्मार्ट ने चमक दिखाई पर अंदर अंधेरा था। अब हमें मिलकर ऐसे अंधेरे को अगली बार पहचानना होगा और वक्त रहते रोशनी लानी होगी। एंड गवर्नमेंट शुड डेफिनेटली टेक अ स्ट्रांग स्टेप टुवर्ड्स इट। अब आपके क्या विचार है |

हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताइएगा। 

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